2024 Gurupushyamrita yog
गुरुपुष्यामृत योग
तारीख दिन. समय शुरू. अंत समय
25 जनवरी गुरुवार 08:17 प्रातः अगले दिन प्रातः 06:53 बजे
22 फरवरी गुरुवार 06:43 प्रातः से 04:43 अपराह्न तक
26 सितंबर गुरुवार 11:34 अपराह्न अगले दिन प्रातः 06:09 बजे
24 अक्टूबर गुरुवार 06:15 प्रातः अगले दिन प्रातः 06:16 बजे
21 नवंबर गुरुवार 06:28 प्रातः से 03:35 अपराह्न तक।
22 फरवरी गुरुवार 06:43 प्रातः से 04:43 अपराह्न तक
26 सितंबर गुरुवार 11:34 अपराह्न अगले दिन प्रातः 06:09 बजे
24 अक्टूबर गुरुवार 06:15 प्रातः अगले दिन प्रातः 06:16 बजे
21 नवंबर गुरुवार 06:28 प्रातः से 03:35 अपराह्न तक।
क्यों है गुरुपुष्य इतना महत्वपूर्ण ?
आईये जानें इस दिन क्या करना विशेष शुभदायी माना गया है।
इंसान कितना ही धार्मिक, ईश्वर प्रेमी या साधु प्रवत्ति भी क्यों न हो परंतु गुरु के बिना संसार में रहकर आध्यात्म की और नही बढ़ सकता। गुरु ईश्वर और आराध्य भक्त के बीच के मार्गदर्शक या mentor का काम करते है जिससे भक्त का ईश्वर से सही संबंध स्थापित होता है। इस दिन गरूर पुराण का दान किसी वेदपाठी ब्राम्हण को दो पीले वस्त्र के साथ देना शुभ होता है इसके अलावा बृहस्पति स्वर्ण एवं पुष्पराग आदि के कारक है इसलिए इस दिन पुष्परागमणि एवं स्वर्ण धारण करना भी अत्यंत शुभफलदायी माना गया है।
इस दिन निर्माण का नींव या मंदिर में देव प्रवेश मुहूर्त, श्री कृष्ण एवं श्री विष्णु मंदिर उद्घाटन, विष्णु मंदिर के बाईं तरफ अथवा घर के उत्तर-पूर्वी हिस्से के उत्तरी दिशा या घर के पूर्वी प्रांगण के बीच में भक्ति देवी श्री तुलसी वृक्ष का रोपण, गंगा या किसी नदी के तट अथवा किसी चतुष्पथ से संलग्न स्थान पर या किसी मंदिर के पश्चिम दिशा के मध्य में अश्वत्थ वृक्ष का रोपण विशेष शुभफलदायी एवं मंगलकारी माना गया है। इस दिन बनाए गए स्वर्ण अलंकार स्वर्णकार से लेकर घर में लाना तथा इसीदिन शरीर में धारण करना अति शुभ माना गया है।
शुभ कर्म के लिए महत्वपूर्ण दिन होने पर भी इस दिन विवाह करना विशेष अशुभ फलदायी माना गया है। देवता कार्य के लिए शुभदायी इस नक्षत्र में संसार के मोहरूपी विवाह से कोई संबंध न होने पर इस दिन का विवाह पापपूर्ण माना गया है। इस दिन जनसमूह में वक्तृता देना, बच्चों का विद्या आरम्भ, अध्यापक से मिलना, मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि को जाना, नौकरी के लिए आवेदन करना शुभ माना गया है।
इस दिन किराने grocery या अन्य व्यवसाय का प्रारंभ करना, अमलतास, दारुहल्दी, भारंगी, मालती, कमल, केले, हल्दी एवं पिले फूलों का वृक्ष लगाना, देवता एवं ब्राम्हणों का आशीर्वाद लेना या मिलना, जन्मकुंडली से जुड़े प्रश्नों के लिए ज्योतिष आचार्य से मिलना आदि भी शामिल है। इस नक्षत्र से मनुष्य का जो कल्याण होता है वो शब्दों में बयान नही किया जा सकता। जन्मकुंडली के लग्नानुसार गुरु योगकारी लग्न जैसे कर्कट, वृश्चिक, धनु एवं मीन लग्न वालों के लिए गुरुपुष्यामृत अति विशेष शुभदायी है एवं अमृततुल्य माना जाता है।
इस दिन विवाह को छोड़कर सभी व्यावसायिक काम की शुरुवात की जाए तो वो सफल हो जाता है। नवग्रहों में श्री गुरु बृहस्पति को सबसे बड़ा और बृहद आकर का माना जाता है इसलिए इस दिन में विवाह को छोड़कर किसी भी काम की शुरुवात करने से उस काम व व्यवसाय में व्यापकता की वृद्धि होनी शुरू हो जाती है जिससे गुरु बृहस्पति की कृपा से जातक का भला हो ही जाता है और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद अवश्य देता है ये अनुभूत है। मनुष्य जीवन के अल्पसंख्यक जीवित समयकाल में साधन कठिन ईश्वर के सानिध्य के लिए गुरुपुष्यामृत योग एक महा वरदान रूपी वो नाँव है जो प्रलयकाल में भी मनुष्य को तार देने वाला माना गया है। आप भी इस मंगलमय दिन को प्रयोग में लाकर इसका लाभ उठाएं।